जहाँ तक सरकार की कार्य कुशलता
अथवा उसकी लोक कल्याणकारी मुद्रा का
प्रश्न है मैं ऐसी प्रजातांत्रिक प्रणाली
और छद्म विचार सरणियों का कायल
कभी नहीं रहा
लेकिन मैं यह कहने से भी रहा कि
इस तरह की सरकार या
सरकार का इस तरह होना
जनपदीय आदर्शों के विरुद्ध है
लेकिन प्रश्न रह ही जाता है अनुत्तरित
कि कोई न कोई वजह तो जरूर रही होगी
जो अपने एक साक्षात्कार में
भोपाल गैस कांड में अपना सब कुछ गँवा चुकी
एक स्त्री, नाम : नफ़ीसा बेगम उम्र अड़सठ साल,
निवासी : कैची छोला, पुराना भोपाल, म.प्र.
चिल्ला-चिल्लाकर कहती है
'सरकार! सरकार की पूछते हो हमसे!
अगर मेरा बस चले तो जंगलात के सारे शेर
इस सरकार के पीछे छोड़ दूँ मैं'
हालाँकि जंगलात के शेर किसी के पीछे
छोड़ देना हुआ एक भाषाई मुहावरा
लेकिन सवाल फिर भी सामने पेश आता है
कि आखिरकार नफ़ीसा बेगम के बस में
कब कुछ इस तरह होगा कि उसके
एक इशारे पर जंगलात के सारे शेर
कूच कर जाएँ सरकार के खिलाफ
गोकि, नफ़ीसा बेगम के इस हलफि़या बयान में
कूट-कूट कर भरी हिकारत तो
प्रकट होती ही है